बाप का जूता इक रोज घर से निकाल फैंका मैने
पैर बढ़ गया था मेरा,मेरी औक़ात की सोहबत में।-
पलट कर कुछ ज़िन्दगी के सफ़्हात इक दिन
बदल दूँगा मर गए जो जज़्बात इक दिन
बहुत दिन सबके लिए मैंने आशिक़ी की
निकालूँ अपने लिए कुछ लम्हात इक दिन
निगाहों में आज उसकी कुछ भी नहीं है
बदल जाएँगे मगर उसके ख़यालात इक दिन
अदा उसकी काश मुझको भाती कहीं पर
दिखा देता मैं भी उसको औक़ात इक दिन
हँसे मुझ पर मिल के सारे रोया नहीं मैं
मुझे भी मिल जाएँगे कुछ फ़रहात इक दिन
अभी 'आरिफ़' ज़िन्दगी भी सानी नहीं कुछ
कहीं जाकर बाँट तू भी ख़ैरात इक दिन-
तुमने जो भी कहा मैंने चुपचाप सुन लिया,
मेरा जवाब भी मिले वो औक़ात नहीं तुम्हारी।-
मोहब्बत के बाज़ार में इश्क़ तो मुफ्त में मिलता है अंदाज
कीमत दर्द की चुकायी जाती है दिल की औक़ात देखकर-
आप से तुम, तुम से तू पर आ गए,
देखो तो हमारे सनम, अौक़ात पर आ गए ।
बैठाया था जिसे दिल के आश़ियाने में,
हरकतों से अपनी, कमज़र्फ सड़क पर आ गए ।
नादानी समझ बेवफ़ाई को किया माफ़,
हम हुए बेरंग और वो रंग पर आ गए ।
सँजोए थे सपने, दुल्हन बन आएंगी डोली में,
कम्बख़त दे दग़ा, हमारी ही अर्थी सजा गए ।
देखो तो हमारे सनम, अौक़ात पर आ गए ।-
मेरे दामन में जैसे ख़ुशियों की कोई सौगात है ही नहीं
औरत हाँ_हाँ! औरत हूँ साहब कोई औक़ात है ही नहीं
एक आंँसू गिरा मेरा कि बह गए दुनिया के दर्द-ओ-ग़म
ख़ुदमें ख़ुद ही हंँस ली मैं चूँकि ख़ुशी बहुतात है ही नहीं-
माना दामन में मेरे खुशियां नही
पर कोई मेरे हिस्से की खुशियां छीने
ऐसे किसी की औकात नही
अब मेरे आँसू बन चुके हैं ताकत मेरी
औरत हूँ तो क्या,अब में खुद में खुश हूँ
किसी की मोहताज नहीं-
वक़्त की तल्ख़ियाँ बर्दाश्त है मुझे
मगर ख़ामोशी इस दौर की मुझे बर्दाश्त नहीं
ख़ौफ़ किस बात से खाये बैठे हो
दे सके जो मौत से ज्यादा किसी की औक़ात नहीं-