रखे गर अर्जुन सा, लक्ष्य और एकाग्रता अगर हम। नही रोक सकती, कोई भी मुश्किल फिर कदम। हमे तो देना है अपना, सिर्फ और सिर्फ सर्वोत्तम। नतीजा होगा वही, जो होगा सभी के लिए उत्तम। हार या जीत तो होते ही है, हर खेल के नियम। मगर हार से ले हम सबक, और जीत में भी रहे सम।
निर्वात से उन्नयन, एकांत से एकाग्रता! की ओर चल रे मन..मत भटक, सब प्रलोभन हैं यहां, रूप भी और रंग भी, है कोई क्या संग भी? तू अकेला है रे जातक, मान ले.. साध पहले खुद को साधक, ठान ले.. स्वतंत्र, शिव रक्षक हैं रे मन, जान ले..