सुबह सुबह जब आँख खुली तो देखा
कुछ ख़्वाब सिरहाने बैठे थे...
कुछ खट्टे मीठे एहसासों के स्वाद
होठों पे अब भी बाकी थे...
उन्हीं ख्वाबों को अल्फ़ाज़ में पिरोकर,
एहसासों के कोमल धागों से...
इक नज्मों की माला बनायी है,
स्वीकार करना ये भेंट प्रिये, कि
तेरे लिए हीं तो दिल की महफ़िल सजायी है!!
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