लगता है बिछड़ जाना तुम्हारा।
सोचती हूँ ये कभी-कभी
काश हो ऐसा
मैं खोलूं आँखे और हो एहसास,
देख रही थी नींद में
एक बुरा सपना
तुम तो हो अभी भी मौजूद
यहीं मेरे आस-पास।
जब भी मेरा जी चाहे
छू सकती हूँ हाथ बढ़ाकर तुम्हें,
जब भी जी चाहे
दे सकती हूँ आवाज़ तुम्हें।
और तुम चली आओगी
हमेशा की तरह
सुनकर एक पुकार मेरी,
थाम लोगी हाथ मेरा
खिलखिलाओगी संग मेरे
हो चुकी है वीरान जो दुनिया
वो कर दोगी फिर हरी-भरी।
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