सिसक रही मिट्टी पुकारती है,
धरा का ऋण तुम भी उतार दो,
सीमा के जवानों का ही काम नहीं
अपनी गलियाँ ही तुम संवार दो,
देखो गौर से घर की बेटियों को
हर बेटी को वही व्यवहार दो,
छलनी क्यों भारत माँ का आंचल
दुशासन अपने मन का मार दो,
हर गली मिलकर देश बनता है
तुम सुधरो, सारा देश सुधार दो !
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