उज़्र - क्षमा मैं अपने में ही हूँ मदमस्त हाथी मुझको दुनिया की फ़िक्र कहा। भोंकते होंगे कई स्वाँग मेरे पीछे भी पर मुझ तक पहुंचे इतना उनकी आवाज में दम कहा। खुश होते होंगे वो कटाक्ष कर के भी नासमझ है वो क्या जाने उनकी बातों का मुझ पर असर कहा। उज़्र की जो रखते है उम्मीद मुझसे भी खुदा के बंदे है वो उनसे नाराज होने की मेरी औकात कहा।