बर्बाद-ए-गुलिस्ताँ करने को, तो एक ही उल्लू काफी था,
हर शाख पर उल्लू बैठे हैं, अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा .(बहराइची)
अंजाम से हमको क्या डरना, जब उल्लू हमने पाले हैं,
जो खा कर प्रजनन करते हैं, वो दाने हमने डाले हैं..
उल्लू के गले में हमने ही, फूलों की माला डाली है,
उल्लू को हमने वोट दिए, तब उसने सत्ता संभाली है ..
हर बार यूँ ही सब होता है, हर बार यूँ ही हम रोते हैं,
उल्लू के हाथों उल्लू बन, हम अपना ही सुख खोते हैं ..
फिर पाँच साल तक ये उल्लू, 'लक्ष्मी' के दर्शन करते हैं,
बस अपना उल्लू सीधा कर, ये अपनी झोली भरते हैं ..
और पाँच साल के जाते ही, ये उल्लू फिर से आते हैं,
पैरों में गिर के रोते हैं, और हम को 'बाप' बताते हैं,
उल्लू की बातों में फँस कर, हम फिर से उन को चुनते हैं ,
यारों, हम इनको उल्लू' कहते हैं,ये हमको उल्लू कहते हैं..
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