सज़ा उम्रकैद मालूम थी फिर भी ये गुनाह कर लिया है,
हर रोज थोड़ा थोड़ा करके इश्क बेपनाह कर लिया है..
थोड़े बहाव के साथ बहकर चला जाए ऐसा होता तो फिर भी कोई बात न थी,
पर इस दिल को सब्र कहाँ इसने तो इश्क समन्दर सा अथाह कर लिया है..
दिन आराम से बीते कुछ दिन रातों के साथ गुफ्तगु करते करते,
इसीलिए अब हर एक पल को अपने रातों सा ही स्याह कर लिया है..
जानती थी पहले से वो नहीं था मेरा और ना ही कभी होगा आगे,
फिर भी अधूरे से इश्क में खुद को पूरा तबाह कर लिया है..
एकतरफा था इसीलिए ना उसकी हाँ की जरूरत रही और ना ही इन्कार की,
अपने ज़ेहन में उसकी तमाम यादों के साथ ही मैंने अपना निकाह कर लिया है..
दर्द उतारा है मैंने भी अपना कोरे पन्नों पर नज़्मों के जरिए,
जब नहीं मिली बज़्म कोई तो बर्बादी पर अपनी खुद ही वाह कर लिया है..
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