*जीवन का सार*
मनरूपी मंदिर का, स्वच्छ विचारों से सिंगार करो
न बुरा खुद सोचो, न बुराई का तुम प्रचार करो
गलती पर माफी लो, और गलत का प्रतिकार करो
अपने शस्त्रों से तुम, बुरों का नहीं बुराई का संहार करो
आलस्य से हार होती है, कर्मों से जीत निश्चित है
साहिल खुद चलकर आएगा, बस तुम सही दिशा में पतवार करो
बिना सफर के राह को तक के, किसे आज तक मिली है मंजिल
पत्थर से शजर नहीं उगते, बीज गर बोया है तो ही फल का इंतज़ार करो
एक कफन और चंद लकड़ियों, में समा जाओगे तुम
ये शरीर भी साथ न जाएगा, इस काया का न अहंकार करो
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