मेरे महताब अगर तेरी दीद हो जाए,
हिज्र - रोज़े के बाद मेरी ईद हो जाए,
तेरा दस्ते करम जो दे वो आबे कौसर है,
ज़हर दे जाए अगर वो मुफ़ीद हो जाए।
यूँ समझिए मेरे महबूब की अदाओं को,
जितने बैठे हैं बज़्म में मुरीद हो जाएँ।
पहलू में उसके तुमको अश्क़ गिराने होंगे,
ताकि महबूब के दिल की ख़रीद हो जाए।
तू समझ जाए के शायर की शिफ़ा कैसी है,
मर्ज़े उल्फ़त अगर तेरा मज़ीद हो जाए।
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