जब से रंग लगा है मेरी रूह को तेरे इश्क़ का
तुमको रंग-ए-हर्फ़ में धोल कर निखारने लगा हूँ
उभर आती है नई नई रंग-ए-हसरत देख कर तुमको
खुद की तमाम खुशियों को तुम में तलाशने लगा हूँ
हो न बात,मुलाकात तो रहता हूँ अधूरा सा
तुमको खुद का एक हिस्सा अब मनाने लगा हूँ
हा है इश्क़ तुमसे, कहो तो इज़हार सरेआम कर दूँ
दुनिया की परवाह नही,बस तेरी फिक्र बेहिसाब करने लगा हूँ
ना मंजूर हो मोहब्बत मेरी तो नब्ज-ए-हयात रोक देना
ये मेरी ज़िन्दगी तुम्हारी, तुम्हारे हवाले करने लगा हूँ
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