वो बता ना सके क्या है मेरी ख़ता?
हम भी सहते रहे हर सितम बेवज़ह!
दरबदर हो गयी ज़िंदगी इश्क़ में,
कौन चाहेगा फिर आपको इस तरह!
उलझनें इस तरह दरमियां आ गयी,
कैसे सुलझाऊँ मैं हादसों की गिरह.?
तोड़ कर दिल मेरा वो भी हैरान हैं,
दे गए वो मुझे शायरी की वजह..!
क्यों परेशान हूँ बेवफ़ा है सनम ?
राह-ए-उल्फ़त में तो लाज़िमी है जफ़ा!
स्याह हसरत के रंगों से क्यों मैं डरूं?
रात काली ये ढलकर बनेगी सुबह..!
ये है दुनिया स्वतंत्र क्यों परेशान हो?
ख़ुद ही लड़कर बनानी पड़ेगी जगह.!
सिद्धार्थ मिश्र
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