ज़िन्दगी क्या बात है... हुँ
क्यूँ उदास है... तुझे कितना समझना पड़ता है
अरे भई... सबकुछ सबके लिए नहीं है
यह जीवन है... यहाँ कुछ पाना.. कुछ खो जाना पड़ता है,
अच्छा... यह जो तारे हैं फ़ासलों पे
यह दूर दूर हैं.. तभी खूबसूरत हैं
इक जग़ह होते तो कैसे लगते... हुँ.. बोलो
क़भी क़भी निखरने के लिए... बिख़र जाना पड़ता है,
जिंदगी... क्या बात है... हुँ,
अब रोने को जी है तो रो जीभर के
फ़िर मुस्कुराना भी तो है...,
सावन भी आने वाला है...
गरजेंगे मेघ तभी तो बारिश का अंदेशा होगा
चलने से पहले... रास्ता बनाना पड़ता है,
"ज़िन्दगी" क्या बात है... हुँ
तुझे कितना समझाना पड़ता है!!
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