शुक्र मनाऊ तेरे आने का या इत्तेफाक समझू तेरे साथ होने का,
जिंदगी भी क्या हसीन मोड़ पे है ले आई प्यार ने ही है बोला कर लो अपनों से लड़ाई।
दो दिन ना मिलो तो बेवफा कहते हैं,
अब सांस भी हम सब से पूछ कर लेते हैं।
दिल की बेचैनी अब मेरे सिर्फ अल्फ़ाज़ समझते हैं,
तेरे ख्यालों में एक बार जो खो जाऊं तो मेरे स्याही भी तेरा साथ देते है।
तुमसे बात करने से पहले ही घिर जाता हूं मै कई सवालों में,
ये जबरदस्ती का सक है तुम्हें या खफा हो?
कहीं किसी और ने तो नहीं ले ली है मेरी जगह।
कैसे कहूं रुक जा, मेरी राहगुजर बन जा,
दो कदम चलने से पहले जिसने देखा हो अपना फायदा तो कैसे चल तू दुनिया छोड़ एक कदम भी तेरे साथ।
सिमट रहे हैं चंद अल्फाजों के बीच मेरे दिन,
बयां कर रहे हैं कागज मेरे बीते दिन।
अब दूर रहो या खफा रहो,
अगर अब मोहब्बत करना हो तो एक और इतेफाक का इंतजार करो।
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