नए दौर के नए सपूत हैं
कथा नया एकबार लिखेंगे,
पन्नों की दरकार नहीं अब
खुदमें ही इतिहास लिखेंगे,
जाना तोह कुछ दूर है हमको
अनुभव को ही संसार लिखेंगे,
ज्वाला जलती कण-कण मेरे
अंगारों का सैलाब लिखेंगे,
ज़िद की बाहें जकड़ ली है
कुछ करने की आस पड़ी है,
अब सच में जीना भूल गए हम
उन्मत्त की दरिया में डूब गए हम,
अब रुकना ज़हन की फितरत नहीं
धीरे - धीरे उभर चलेंगे
बस अब एक ही आफत मची पड़ी है
हम तोह अब इतिहास लिखेंगे,
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