कुर्बान है ये ज़िन्दगी तुम्हारे प्यार के लिये तुम्हारा अक्स ही काफी है तुम्हारी इबादत के लिए
छू न पाए तुम्हे दुखो का एक कांटा भी मिट जाऊं बन कर धूल तुम्हारे कदमो की
बस जाउंगी एक दिन तुम्हारी ही रूह में रहूंगी हर जन्म तुम्हारे संग एक नए रूप में तू अगर इज़ाज़त दे....
खो दूँगी खुद को तुम्हारे वजूद के लिए पर आंच ना आने दूंगी तुम्हारे सम्मान को कर जाऊंगी समझौता खुद की ज़िंदगी से पर ना होने दूँगी बेगाना तुम्हे इस दुनिया से तू अगर इज़ाज़त दे.....
नहीं जी नहीं , निषेधात्मक ही सही पर कितना ये आसान है कहना जन से नहीं , समुदाय भी नहीं पर कितना कठिन अपनों से सुनना मुठ्ठी भर से तो रिश्ते निभाने में ही तिनका तिनका सबको चुनना इश्क नहीं तो जिम्मेदारी ही पर कितना मुश्किल मिलकर चलना क्या बात करने की इजाजत नहीं पर कितना भारी शब्द बुनना कभी खट्टी - मीठी या कड़वी सही पर कितना अगम्य अहमियत समझना
घर से बाहर जाने की खुलकर हँसने की अपनी दिलीइच्छा बयाँ करने की किसी भी बात को ना कहने की बाहर गोलगप्पे खाने की नाचने गाने की घर में चिल्लाने की झगड़ा होने पर पलट करना जवाब देने की इन शिकायतों को यूंही विराम दें जनाब वरना इन शिकायतों का जमावड़ा यूं ही चलता रहेगा और हम अपने जिंदगी जी नहीं पाएंगे