प्यार का इजहार था कि, मुझे कोई नयी ख्वाब दे गयी
पढ़ने को ली जब किताब, रखकर उसमें गुलाब दे गयी।।
जाता था मैं हर रोज़ स्कूल, बस एक झलक पाने को
कमबख़्त छुट्टियाँ क्या आयीं, यादों के सैलाब दे गयीं।
मैनें जब कहा चांदनी हो तुम, महफूज़ रखूंगा दिल में
किया इशारा आसमां को, खिताब-ए-महताब दे गयी।
पूछा जब प्यार करती हो, जीवनसंगिनी बनोगी
शरमाईं जरा सा और, मेरे हाथ में हाथ दे गयी।
शिद्दत से चाहो जिसे, भगवान मिलाता जरूर है
कर्म करो फल मिलेगा, जिंदगी यूँ रुबाब दे गयी।
*महताब- Moon
*रुबाब- Guide to the right path
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