हर रंग से गुजरी है जिंदगी, हर रंग से मैं मुखातिब हुआ,
इंद्रधनुष के सात रंग सा, फिर तेरा प्यार मुनासिब हुआ!
पुर पुर घुमा मैं तुम्हे तलाशने, जिस पृरी में तेरा रहना था,
सात पृरी सी निर्मल निश्छल सा, तेरा प्यार नसीब हुआ!
कभी बलखाती, क्भी इठलाती, क्भी बहती तू आंखों से,
मोक्षदायनी सात नदियों सी, जीवनभर का उद्धार हुआ!
लोक परलोक की बातें बेमानी, हर लोक सी तू लगती है,
सात लोक सी दुनिया जैसी, आत्मलोक सा प्यार हुआ!
मेरी ही तुम ब्रह्मांड हो, तुम ही हो मेरी आधार जगत का,
सात ग्रहों के इर्द गिर्द घूमती सी, मेरा ये घर संसार हुआ!
पत्नी, प्रेयसी, दोस्त, सहचरी, हर वक़्त तुम हाज़िर रही,
सप्त वंदनीय के तुम हो बराबर, आदर का आदर हुआ!
पग पग पर तू साथ है मेरे, जीवनपर्यंत का वचन हुआ, _राज सोनी
सप्तपदी के बंधन में हम दो, जीवन का अंगीकार हुआ!
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