एक अलग ही दिन होता था.. एक अलग ही रात होती थी.. जब उससे बात होती थी,
यह जो ज़िन्दगी दूर सी है आजकल.. यह बहुत पास होती थी.. जब उससे बात होती थी,
तन्हा थे हम पहले भी.. पऱ इतने ना थे ज़ुस्तज़ु-ए-मंज़िल में
इन सपनों की अथाह राहों में.. तब वो मेरे साथ होती थी.. जब उससे बात होती थी,
वो दिन भी क्या दिन थे.. जब ख़ुशियों का ठिकाना पता था मुझे
उसकी पारस सी उँगलियाँ.. जब मेरे दोनों हाथ होती थी.. जब उससे बात होती थी,
स्पर्श के एहसास मुरझाते कहाँ थे.. मन की पंखुड़ियों में तितलियों के झुरमुट से थे
गुलमोहर के फूलों सी ख़ुश्बू.. मेरे हर स्वास होती थी.. जब उससे बात होती थी,
यह जो ज़िन्दगी दूर सी है आजकल..
यह बहुत पास होती थी.. जब उससे बात होती थी..!
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