मेरे प्यार की हद को बेझिझक आज़मा लो तुम,
पर बहुत बारिक़ शरहद है वो ये कभी भूल ना जाना,
मुझसे बेशक़ नाराज़ रह लो तुम,
पर अपनी नराज़गी को कभी अपनी आदत मत बनाना,
दरारें तो बेशक़ आ गई हैं हमारे दर्मियाँ,
पर उन दरारों को कभी खाईं ना बनाना,
तुमने कह तो दिया की सारी खता मेरी है,
पर ये सवाल कभी अपने अन्तर्मन से भी पुछ जाना...!
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