जब क़लम सूख जायेगी शब्द रुक जायेंगे
लब्ज़ पंक्तियों में कहाँ कोई फिऱ आयेगा,
मिट जायेंगे यह कल्पनाओं के चलचित्र सभी
रंगमंच पे पर्दा ना जाने कब गिर जायेगा,
इक सपना था मेरा चाँद को छू लेने का
क्या पता था के वो तारों सा बिख़र जायेगा,
दिल है के कम्बख़्त मेरी सुनता ही नहीं
जिधर है मना..., बस यह उधर जायेगा,
पगला..., सांप के मुंह में मणी देखकर
सोचे के यह दौर मुफ़्लिशी का गुज़र जायेगा..!
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