-:एक मतला, एक शेर:- दिख जाते है वो, जो जमीन में रहते हैं मेरे चाहने वाले आधे, आस्तीन में रहते हैं कोई राज़ बताकर , जब मैं सो जाता हूं बाहों से जेबों तक, छान बीन में रहते हैं
बुजुर्गों से मिली विरासत को संभाल रखा हूं खुद अपनी जान को मुश्किल में डाल रखा हूं पता है की बना लेंगे मुझे भी निशाना किसी दिन फिर भी कुछ सांपों को आस्तीन में पाल रखा हूं
तो सभी अपने हैं पर जब जरूरत पड़ती हैं, तो कोई अपना नहीं दिखाई देता हैं। सब सिर्फ अपने स्वार्थ और जरूरत के हिसाब से अपनेपन का दिखावा करते हैं। हमारे विश्वास के साथ खेलते हैं। वही अपने हमें आस्तिन के साँप कि तरह डस कर कही का नहीं छोड़ते।
अब इन हक़ीक़त के साँपों में दम कहा है, डसने का काम कुछ जहरीले लोग कर रहे है, और आप तो खामखां इन साँपो से डरते है, लोग साँपो से नहीं, जहरीले लोगो से मर रहे है।