मैं आसिफा हैवानियत की सारी हदें पार हो गई आज तो इंसानियत भी शर्मसार हो गई आज फिर मेरी इज्जत नीलाम हो गई निर्भया कोपर्डी की तरह कठुआ केस भी आम हो गई
कैसे बयां करूं खुद पर हुए जुल्मो को,
नफरत की बेडीयों से मुझे बांधा गया नशे का घूंट मुझे पिलाया गया हवस की आग में मुझे जलाया गया जहन्नम का एहसास मुझे दिलाया गया हर जुल्मों सितम मुझ पर ढाया गया मेरी आखिरी हद तक मुझे आजमाया गया
माँ! में बहुत चिल्लाई रोई गिड़गिड़ाई पर कुछ ना हो सका
देखते ही देखते मेरा सुख दुख में बदल गया और मेरा वजूद दूसरों के हाथों का खिलौना बन गया फिर वो वक्त आया मौत ने अपना वादा निभाया इस दर्द भरी बेजान जिंदगी से मुझे आजाद करवाया
लोगों के व्यक्तित्व पर घिनौनी सोच का पहरा है
राजनीति और जातिवाद ने मुझे घेरा है हर इंसान का दोमुंहा चेहरा है जब तक खुद पर ना बीते तब तक हर इंसान यहां गूंगा और बहरा है।
बंद पिंजरे में वो उड़ने का ख्वाब संजोये बैठी थी 'निर्भया' थी वो 'आसिफा',जो होश खोये बैठी थी कुतरने लगे दरिंदे पर उसके, पर वो नादान थी, मुर्दा समाज में मदद को पलकें बिछाये बैठी थी