क्या है यह ज़िन्दगी..
बस सब... वक़्त के परिंदे हैं
कुछ हैं जमीं पे... कुछ तख़्त पे परिंदे हैं,
यह सारा आसमाँ.. है नहीं पाना मुम्किन
फिऱ भी आसमाँ में उड़ते.. हर शख़्श के परिंदे हैं,
अब किसको क्या मिला.. यह अपना अपना नसीब है
बस कुछ हैं खुले खुले.. कुछ ज़ब्त से परिंदे हैं
कुछ हैं.. कैद पिंजरे में.. कुछ दरख़्त पे परिंदे हैं!— % &
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