QUOTES ON #आस

#आस quotes

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7 SEP 2019 AT 3:15

तपती आँच में ख्वाहिशें नहीं जला करती,
सहज स्त्रियाँ यूँही जटिल नहीं दिखा करती,

बाँध लेती है आस की डोर से खुद को
बंद मुट्ठी से आसमान नहीं लिखा करती,

ढूंँढ लेती है रास्ता वो बिखरे से रिश्तों में
खिंचकर टूट जाए, ऐसा नहीं राब्ता रखती,

बिखर जाती है अक्सर ही काँच की तरह
'दीप' वो पत्थरों सा दिल नहीं रखा करती,

ईश्वर की ही नेमतें हैं ये आसमां-औ-जमी ं
सृष्टि स्त्री से बेहतरीन और नहीं रचा करती !

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10 JAN 2020 AT 9:08

कितने सारे सपने सजाए बैठे हैं,
दिल में कितने अरमान जगाए बैठे हैं।
हमें लगता है कि वो वापस जरूर आएंगे,
बस कबसे यही आस लगाए बैठे हैं।।

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8 APR 2020 AT 16:04

कुछ इस तरह से ज़िन्दगी से रिश्ता बनाये रखना
हर मुश्किल पे मुस्कुराना.., आँसु छुपाये रखना,

दिल है मूक बच्चे सा यह पल में बहल जाता है
तुम बस खिलौने ख़्वाइशों के सीने से लगाये रखना,

तू झड़ते पत्तों पे ना उदास हो ए शज़र
फिऱ कोपलें फूटेंगी.., बस शाख बचाये रखना,

बहुत बड़ा है निराशा की कैद से आस का यह आसमां
पिंजरा खुलेगा एक दिन.., "पंछी" तू पंख फैलाये रखना..!

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18 FEB 2020 AT 7:54

ना इस पार
ना उस पार छोड़ गया,
वो गया यूँ के
बीच मंझधार छोड़ गया,

नफ़रतों ही नफ़रतों में
जऱा सा प्यार छोड़ गया,
सुर्ख सी नज़रों में
आँसु बेशुमार छोड़ गया,

ले तो गया वो मेरा
सबकुछ बादा फ़रामोश
पऱ जाते-जाते
अपना इंतज़ार छोड़ गया,

इक ठहरा सा समुन्दर...
औऱ लहरें हज़ार छोड़ गया..!

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8 DEC 2019 AT 19:21

मेरी साँसे भी मुझसे ही रुठी है,
तेरी आस कुछ इस कदर छूटी है...

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12 MAY 2020 AT 14:45

आँखो में समन्दर लिए किनारे कि तलाश में हूँ,
वक्त को वक्त देकर, वक्त पाने कि आस में हूँ।

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16 FEB 2022 AT 17:50

मिलना ही है...
मिलना ही है बादलों से बिछुड़ती बूँदों को.. बादलों से फ़िर मिलना ही है...,
भंवरों को.. तितलियों को.. फूलों के खिलने पे खुशबू से फ़िर मिलना ही है...
यह तन्हाई से भरी रात भी सुबह होते मिट जाएगी.. स्याह से भरे इन अंधेरों को उजालों से फ़िर मिलना ही है...,

कब तक पिंजरे में बंद करके.. वक़्त रखेगा ख्वाबों के पंछी को.. क़भी ना क़भी तो पंखों को हवाओं से.. आसमां पे फ़िर मिलना ही है... है ना,
माना राह में बहुत पत्थर हैं.. पर पानी रास्ता बना लेगा ही.. तरंगिनी को साग़र से.. हर हाल में मिलना ही है,
मैं भी इस आस में बैठा हूँ.. के तुम चाहे कहीं भी हो.. क़भी कहीं किसी राह तुम्हें.. मुझसे तो फ़िर मिलना ही है...

मिलोगी ना...!

— % &

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27 DEC 2021 AT 6:57

एक वृक्ष खड़ा है... बिना जड़ों के
अधमरा है अभी
तड़प रहा है.. अस्तित्व पाने को
ना फूल खिले हैं ना फल हुए हैं
नीरस ठूँठ पड़ा है
एक छोटी - सी उम्मीद
जोड़े है अभी धरा से
सांसो की वो आख़िरी उम्मीद...

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27 MAR 2020 AT 9:11

आज तू क्यों उदास बैठा है,
ख़्वाहिशों के पास-पास बैठा है!

बटोर ले खुशियां अपने दामन में,
तू प्यार के समंदर के पास बैठा है!

गम की छत आशियां नहीं होती,
तू इस कब्र के पास क्यों बैठा है!

जिंदगी आफतों की जीने को,
क्यों अपना सौभग्य मान बैठा है!

खोल कर आँख फ़लक़ देखो तो,
देख, आस में तेरी यह वक्त बैठा है!

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22 OCT 2021 AT 19:01

कई इंसानों की जिंदगी को
जब देखा मैने
उनके चेहरों की खिड़की से
तो महसूस हुआ के
उनके भीतर पता नही कितने गम
उस आस में बैठे है
की किसी दिन कोई कान उनके नसीब में भी हो
ताकि शब्दो के जरिए उन कानो में पहुंच कर
वो गम भी
थोड़ा सा
सुकून महसूस कर सके !

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