ज़िंदगी बता, इक पल न क्यों आराम है
जीते खाक है, गुज़ारते सुबोह - श्याम है
सोचता हूँ,उम्र बसर हो किसी भी सूरत
बिताना अब तो पहर भी, हुआ हराम है
रौंद कर मुझको भीड़ निकली है, आगे
बेमन चल रहा हूँ, जहाँ उनके निशान है
सकूँ,तसल्ली, इत्मीनान, मिला ही नही
जाने क्यों हर कोई, इस कदर परेशांन है
बेवज़ह, बेमायने कब तक जियें, 'राज',
खुशी,ग़म,चाह भी नही अजब मुक़ाम है
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