होंठों पर मुस्कान सजाकर,
तुमसे मिलने जब भी आया!
दूरी सी महसूस हुई कुछ,
खुद को तुमसे दूर ही पाया!
व्यर्थ हुए सब यत्न क्यों मेरे?
कोशिश की पर समझ न पाया!
उलझे थे तुम और कहीं पर,
फिर भी खुद को ही समझाया!
मान लिया मजबूर हो शायद,
एक तरफा संबंध निभाया..!
स्वतंत्र करूँ क्यों शिक़वा तुमसे?
किसी की ख़ातिर मुझे भुलाया!
सिद्धार्थ मिश्र
-