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विस्तार पत्थरों का किए जा रहे हैं हम
दावत विनाश को भी दिए जा रहे हैं हम /१/
पेड़ों को काट कर खड़े हमने महल किये
इसको विकास नाम दिए जा रहे हैं हम /२/
आबोहवा ख़राब है जीना मुहाल है
दहशत में ज़िंदगी को जिये जा रहे हैं हम /३/
पानी बिका, धरा बिकी अब शेष और क्या
चुकता हवा का दाम किए जा रहे हैं हम /४/
जब तक स्वच्छंद थी धरा खिलते रहे चमन
लालच में ये भी नष्ट किए जा रहे हैं हम /५/
हम बंद हैं घरों में, है हम सबकी गल्तियां
फिर क्यों वबा का नाम दिए जा रहे हैं हम /६/
अब भी न चेते हाल कैसा होगा सोचिए
साँसों के नाम मौत किए जा रहे हैं हम /७/
_Anu Raj
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