रात के आँसू ,ढंग बदलते रहे
पानी, कभी लहू ,रंग बदलते रहे
किसी शब रंजो ग़म जो पी गया
रह रहकर अश्क़ दिनभर छलकते रहे
तसुब्बर-ए-ख़्यालात बख़्शते नही
अरमां उमड़ घुमड़ बदरी से मचलते रहे
आग़ोश-ए-एहसास हाय! तौबा
बाद उसके क्या जिए, बस तरसते रहे
कशमकश में ये हुनर सीख लिया
महफ़िल में अश्क़ पीकर लब हँसते रहे
यूँही गुज़री तमाम शामों सहर ,'राज', Dr
शबभर लिपटकर,सुबह यादें दफ़न करते रहे. Rajnish
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