मैं ,ना तो कोई परिन्दा बन सकती हूँ, ना ही कोई इठलाती हवा, जो बिना कुछ पता हुये भी, अपने लक्ष्य तक पहुँच जाती हैं,
मेरे बस में तो केवल एक 'पतंग' ही है, जो अगर टूटे, तो भी फिक्र नहीं ,पर टूट कर भी तुम्हारे छत पर गिरे,
मेरे भाग्य की डोर बस इतना गुनाह करना चाहती है...।।
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