नारीत्व भूली नारी,,
तहजीब भुला इंसान।
ना प्रेम समर्पण सहनशीलता,,
नाहीं बड़ों का सम्मान।
भारत का गौरव,,
मानवता की ढाल।
टूटी संस्कारों की माला,,
बिखरे मोती लाख सवाल।
इंसानियत मिटती गई,,
धर्मों में बटती गई।
भेद ये गोरा काला,,
सर्वत्र हिंसा आक्रोश ज्वाला।
आओ समेटे नेह मूर्ति,,
प्रेम बनाए अमन यहां।
अदब से रहे हर व्यक्ति,,
सभ्यता से भरा हो जहां।
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