आईने में देखा जो अक्स, तो में घबरा गया, कौन खड़ा है ये शख्स, के मैं घबरा गया, कुछ और ही तस्वीर, बना रखी है लोगो ने, खुद की खुद में ही, जो आईने में देखा खुदको, तो नज़रे बचा गया, कौन खड़ा है ये शख्स, के मैं घबरा गया।
जिस हुस्न ने तोड़ा , उसी ने चुभने के डर से मेरे बिखरे हुए टुकड़ों को समेट कर फेंका है...... गुमान तो मुझे इस बात का है कि ...... उसी हुस्न-ए-नूर ने कल तक मुझमें खुद को देखा है ...