हो दिलके फ़साने या असरार,सरे बाजार नहीं करती
खुशियाँ हों या गम के बादल,मैं अखबार नहीं करती
लेकर लब पर मुस्कान सदा, सारे गम सह जाती हूँ
यूँ बात-बात पर दिल अपना, मैं बेज़ार नहीं करती
चुटकी लेंगें सब नमक लगाकर,घाव और बढ़ जाएगा
जिंदगी के अफ़साने का मैं कभी इज़हार नहीं करती
रीत यही है दुनिया की, सुख दुःख तो आनी-जानी है
रो-रो कर गम के टुकडों को, मैं इश्तिहार नहीं करती
_Anu Raj
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