QUOTES ON #अक़्स

#अक़्स quotes

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22 SEP 2020 AT 15:14

अब तो..
आईने में भी उसका ही
अक़्स नज़र आने लगा है हमें..

जमाना तो..
वैसे भी हमें जानता न था,

मगर अब तो..
ख़ुद को ख़ुद से ही
बदनाम करने लगे हैं हम..!

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7 JUL 2020 AT 23:40

बीच राह में मुझे तन्हा छोड़ गया वो शख़्स
जिसमें मुझे नज़र आता था अपना अक़्स

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20 AUG 2017 AT 1:41

जो मैं हँसता हूँ... वो क्यूँ हँसता है
जो मैं रोता हूँ... वो क्यूँ रोता है
कभी जो रहूँ मैं उदास
बिन बताये... उसे इल्म होता है
कभी जो रहे वो उदास
बिन बताये... मुझे पता होता है
मैं उससे रूठता हूँ कुछ ऐसे
जैसे कोई ख़ुद से रूठता है
वो मुझसे रूठता है कुछ ऐसे
जैसे कोई ख़ुद से मानता है
मैं होता हूँ ख़ुश यहाँ
वो वहाँ चहकता है
वो होता है ख़ुश वहाँ
मेरा मन यहाँ महकता है
न-जाने कब जुड़ा
कैसा यह रिश्ता है
जो देखूँ आईना कभी
मुझे मेरा अक़्स दिखता है

मैं हँसता हूँ... वो हँसता हैं
मैं रोता हूँ... वो रोता है
- साकेत गर्ग

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7 APR 2019 AT 14:08

ख़ुश हो लेता हूँ ख़ुद को आईने में देखकर
वजूद नहीं बावजूद मेरा एक अक़्स तो है

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16 JUN 2017 AT 3:20

वो मेरे जैसा है
मैं उसके जैसा हूँ

वो मेरा आईना
मैं उसके अक़्स जैसा हूँ

वो जो खो गया था
उससे भीड़ में कहीं
मैं उस खोये हुये
शख़्स जैसा हूँ

- साकेत गर्ग

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19 JUL 2017 AT 22:25

अपनी जुबान से क्या कहूँ शब्दों का तक़ाज़ा है
बस ये जान लो आईने में आज बिखरा अक़्स दिखा।।

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10 AUG 2020 AT 17:58

धुँआ-धुँआ हुआ है आज फ़िर अक़्स तेरा, मेरी यादों को जलाया क्या,
आयी है वही पुरानी ख़ुशबू, मेरी मुहब्बत का इत्र फ़िर से लगाया क्या।

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30 NOV 2017 AT 11:18

आईना आईना एक सा ही अक्स नज़र आता है
फिर भी न जाने क्यों वो हर आईने को आजमाता है

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22 APR 2020 AT 6:44

# "दिल के दर्द को समझते नहीं, मुँह की बातें सब जानें,
गुनहगार हूँ भले ही बद्दुआ दें या मुझको कोई न पहचाने!

ग़र हक़ीम हों दिल के कोई यहाँ, दूर ही रहें तो बेहतर है,
डूबकर खो जाता है मेरा अक़्स, चाहे वो जानें या न जानें!

उनकी पलकें जब खुलीं सुबह, दरवाज़े पर मेरे शोर हुआ,
गजरे में लगे उन फूलों की, ख़ुश्बू को शायद न पहचानें!

यादें उनकी आईना हैं, उसमें तलाशता हूँ अपना चेहरा,
मेरे रूह में है बसेरा उनका, अब चाहे वो जानें या न जानें!

शाम न जाने क्या बात हुई, दिल का जर्रा-जर्रा महक रहा,
सरहद, ख़ून, किताबें, मंज़िल, अब शायद वो न पहचानें!

मंदिर-मस्जिद के सदक़े गुज़रे, अल्लाह-ईश्वर का करम हुआ,
माँ और मौसी के फ़र्क को, अब शायद हम न जानें..!"¥

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10 AUG 2018 AT 0:43

जी करता है कभी तेरी उंगलियों के बीच
अपनी उंगलियों का हक़ जताऊँ,
कि तेरी चमकती आँखों में,
अपना अक़्स देखकर शर्मा जाऊँ,
शरारत से तेरी नाक को
अपनी नाक से सहलाऊँ,
इसी बीच अपने होठों को
तेरे होठों से खेलता पाऊँ,
गुदगुदी सी होने लगती है
मन में महज़ इस ख़याल से,
संभाल लेना तुम मुझे उस पल,
मिलकर तुम्हें जो बेहोश हो जाऊँ

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