कहां मिल पाता है एकाधिकार प्रेम में,
सर्वस्व न्यौछावर कर भी कहां कुछ आता है हिस्से में,
हां किंतु ये प्रेम, बहुत सी धरोहरें दे जाता है,
दे जाता है वो अविरल अश्रु धार, एकाकीपन
वो शून्य में निहारती नज़रें, वो राह देखती पलकें,
वो हर दस्तक पर धड़कन का तेज़ हो जाना,
हां इतना कुछ तो दे जाता है प्रेम,
बस नहीं आता कुछ हिस्से में तो वो है प्रेम।।
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