जब मैंने सूरज को धकेल, चाँद को निकलते देखा
मेरे अरमानों को पंख मिल गए
जब मैंने छोटी-छोटी कलियों को, कमल बनते देखा
मेरे अरमानों को पंख मिल गए
जब मैंने गाँव की नहरों को, नदी में मिलते देखा
मेरे अरमानों को पंख मिल गए
जब मैंने माँ के हाथों को, अपने सर लगते देखा
मेरे अरमानों को पंख मिल गए
जब कभी मैंने तुम्हें, खुद से जुड़ते देखा
मेरे अरमानों को पंख मिल गए...........
-विवेक श्रीवास्तव (अर्ज़)
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