कि पहले तो हर वक्त उससे मिलने के नए नए बहाने बनाते हो, फिर उसे अपना बनाने के हसीन सपने दिखाते हो, फिर खुद को उसकी और उसे अपनी जान बताते हो, और जब जी भर जाए इन बातों से तो उसे अपनी असली औकात दिखाते हो, खुद को बेकसूर और उसको कसूरवार ठहराते हो, खुद की अस्मत को बचा कर उसकी अस्मत पर तौह लगाते हो।
तुम पूछते थे न कि अगर यूँ होता तो क्या होता। सुन ले- ऐ ग़ालिब, आज तू होता तो बहुत रोता। बड़े महलों के सामने इंसानी वजूद भी पड़ गया छोटा। जहाँ वो अमीर प्लेट फेकता, वहीं मैं गरीब भूखा सोता।