उनका नूर कुछ इस तरह छाया है
अमावश में भी दीवाली लाया है।
भाते न थे मुझे ये रंग-बंग कोई,
उसके प्रेम का लाल रंग मेरे माथे तक आया है।
दिखता था चाँद हर रोज मुझे मुडेर तक,
आज तो मेरे छत पर आया है।
देखा तो न था कभी मैंने,पर अब लगता है,
तुम्हें पाकर मैंने जैसे ख़ुदा को पाया है।
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