QUOTES ON #अपरिचित

#अपरिचित quotes

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25 MAY 2020 AT 11:58

दोस्ती दूर से निभा लेना।
बिन छुए ही गले लगा लेना।

मैं न आउँ तो क्या हुआ यारा ,
ईद ऐसी भी तुम मना लेना।

प्यार मेरा मिला के इसमें तुम,
शीर ख़ुर्मा बना के खा लेना।

मुफ़लिसों की भी ईद मन जाए।
पल दो पल उनके सँग बिता लेना।

प्यार आँखों से भी तो होता है।
कुछ दिनों प्यार यूँ निभा लेना।

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जानकी और द्रौपदी बनने की अब दरकार क्या?
है ज़माना राक्षसों का बन जरा तू भगवती।

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नया नया पहलू लाता है, जग का रूप नया गढ़ता है।
अपने तन का मोल चुकाकर ,मानव का मन कवि बनता है।

(कैप्शन में पढ़ें पूरा गीत)

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16 JUL 2020 AT 23:09

नित नई राहें दिखाते।
ज्ञान की बातें सिखाते।

राह में जब हम गिरे तो।
युक्ति उठने की सुझाते।

शब्द मन के द्विग हैं होते।
अपनी आँखों से दिखाते।

ज्ञान अमृत को पिलाकर।
प्यास मन की वो बुझाते।

अपना अनुभव शिष्य को दे।
ज़िंदगी उसकी सजाते।

द्रोण जैसे गुरु धरापर।
इक धनुर्धर नित बनाते।

भाग्यशाली हूँ मिले दो।
एक गुरु तो सब ही पाते।

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अज्ञानी को भी ज्ञान के पथ पर चला दिया।
शिक्षक ने अपने शिष्यों का जीवन बना दिया।

अँधकार में कभी कहीं हम डूबने लगे।
शिक्षक के ज्ञानपुंज ने पथ को दिखा दिया।

जब कोख में पनप रहे थे सबसे बेखबर।
माँ के ही ज्ञान ने हमें सब कुछ सिखा दिया।

जीवन की राह में कहीं जो गिर पड़ें कभी।
शिक्षक ने बाँह थाम के हमको उठा दिया।

बढ़ता वही है याद रखा जिसने है सबक।
थम सा गया है जिसने सबक को भुला दिया।

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18 MAY 2020 AT 16:34

2 मनहरण छंद मोबाइल फोन पर
(अनुशीर्षक में पढिये)

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26 APR 2020 AT 10:34

जितने डॉक्टर, नर्स हैं,सब पर कर लो नाज़।
इन्हें ईश ही जानकर, पहना देना ताज़।।








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दोहा गीतिका

जिसने माँगा दे दिया,गुरु ने अपना ज्ञान।
शिष्यों का कर्तव्य है, दें उनको सम्मान।।

शिक्षक अपने शिष्य को,शिक्षा देते रोज।
शिक्षा से होता भला, बात यही लो जान।।

ज्ञानी को जग में सदा, मिलता है सत्कार।
ज्ञानी बनते ज्ञान से,इसका लो संज्ञान।।

शिष्य ज्ञान को सीख ले,होती ये गुरु चाह।
अर्जुन जैसे शिष्य से, बढ़ता गुरु का मान

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बीत गए युग कितने देखो,मानव कितना बदल गया?
खेल आग से करता आया,पर क्या अब वो सँभल गया?

आज चाँद तक मानव पहुँचा,पर मानव मन वहीं खड़ा।
युद्ध बिना क्या चैन उसे है ?क्यों जिद्दीपन भरा पड़ा।

मौत सभी जीवों को आती,मानव पर बिन मौत मरे।
मानव मन से सकल जगत के,जीव रहे बस डरे डरे।

ये धरती है उस ईश्वर की,सब का इसमें है किस्सा।
मानव नित अपनी साजिश से,छीन रहा सबका हिस्सा।

सभ्य मनुज जितना होता है,उतना बर्बर बन जाता।
झूठी शान दिखावे में वो,इस धरती को तड़पाता।

अब भी मनुज नही चेता तो,अंत सुनिश्चित फल लिख लो।
काल समाहित होगी धरती,इस धरती का कल लिख लो।

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10 JUN 2019 AT 20:18

शुक्रिया युवराज

(कैप्शन में पढ़ें)

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