कोई नहीं अपना और कोई नहीं बेगाना
पैसों की प्यास में भाग रहा सारा ज़माना
अपने मन की करते हैं हम सभी के साथ
रिश्तों का नहीं बचा अब कोई भी पैमाना
दौलत, शोहरत, इज्ज़त इसी का नाम है
इसके सिवा हमनें किसी को नहीं पहचाना
ख़ुदा अपने-अपने और धर्म अपने-अपने
सबको आता है अलग-अलग बातें बनाना
ग़रीबी और लाचारी ने जीना बेहाल कर दिया
अमीरों को भाया सिर्फ़ अपना पैसा बचाना
एक आदमी के हज़ारों चेहरे हैं इस दुनिया में
कोई नहीं चाहता अब किसी दिल में समाना
धोखा, दोष, अहंकार अब अपना लिया "आरिफ़"
बहुत मुश़्किल है अब एक दूसरे से बचकर जाना
"कोरा काग़ज़" बना दिया इस दुनिया को सबने
कलम भी चल रही है जैसा चाहा उसको चलाना
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