रीसती दीवारें बुझे हुए चूल्हे कराहते चप्पल बूँद बूँद में टपकते छप्पर उस पर जुबान का कुछ बोल न पाना और बरसों पुरानी प्योंदे लगी कमीज का राज उगलते जाना
कलाई में दो चार चूड़ियाँ पुरानी सी मटमैली धोती चेहरे की फीकी सी मुस्कान मुस्कान की झुर्रियाँ बालों में बेवक्त की सफेदी उस पर स्तन से दूध का ना उतरना और अपलक उम्मीद से दो नन्हीं आँखों का तकते जाना
ईश्वर... ये अन्याय कभी मुझे चैन से सोने नहीं देगा ॥
यूँ ही किसी से मैं लड़ता नहीं, युद्ध से डरता नहीं। अनाचार सहन कभी करता नहीं, अन्याय के पथ पर मैं चलता नहीं। मैं हिंद के रक्षकों का वंशज हूँ। मैं गर्वित रक्षकों का वंशज हूँ।।
सोच रही थी कुछ मैं एक बात ज़हन में आई आज यू तो अन्याय के लिए नहीं आवाज़ उठाते पर जब खुद पर बात आ जाती है नज़रे भी खुल जाती है सारे अन्याय याद आते है तब जब खुद बीतती है उनपर सब
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