माना के तेरे काबिल हम न थे,
पर हर किसी को हासिल हम न थे।
अजीब सी उलझन रहती है दिल में मेरे,
तुम्हे मान के खुदा सही हम न थे।
चिराग जो हमने साथ जलाया था वफ़ा का,
उसे अश्को से भरे रखने के हकदार अकेले हम न थे।
मोहब्बत गुनाह है तो अच्छा हुआ मेरे साथ,
पर सजा में ये सिला मिले ऐसे गुनाहगार हम न थे।
मिलेंगे जब दोबारा कही किसी मोड़ पे,
हम कहेगे तुम कभी मेरे थे, तुम जवाब में कहना हम न थे।
रिवाज हो गया है दिल टूटने के बाद शायर बनने का,
वरना ये ग़ज़ल ये बाते इन सब के कायल हम न थे।
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