आंगन कि "चहल पहल" थी दादी,
बाबा की "ताजमहल" थी दादी,
अपने सभी बच्चों के मुश्किलों की हल थी दादी,
सुकून का "एक पल" थी दादी,
मां की "मीठी लोड़ी" थी दादी,
दूध जैसी "गोरी" थी दादी,
"शक्कर की बोरी" थी दादी,
ममता की खुली "तिजोरी" थी दादी,
दादी के बिना "घर" सुना लगता है,
दादी बिन "दोपहर" सुना लगता है,
दादी गाथा है, कहानी है,
दादी बचपन की एक "अनमोल निशानी" है..!!
:--स्तुति
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