ज़िन्दगी तेरे बाज़ार में, उम्मीदें मचलती हैं, इंतज़ार थोड़ा और दिल, के क़ीमतें बदलती है, इस भंवर में कितना भी, फ़ीर रे मन पंछी, ..... मय्यतें सभी की, खाली निकलती हैं!
अधुरे पन्ने का अधुरे ख्वाब की अधुरा सा हिस्सा हुँ अधुरी सी चाँद हुँ अधुरा होकर भी मैं अधुरी होकर भी मैं एक मुकम्मल सा एक मुकम्मल सी किस्सा हुँ । रात हुँ । अधुरे दास्ताँन का अधुरी कहानी की अधुरा सा ज़र्रा हुँ अधुरी सी बात हुँ अधुरा होकर भी मैं अधुरी होकर भी मैं एक मुकम्मल सा एक मुकम्मल सी अल्फाज़ हुँ । किताब हुँ ।