अधखुला कमल
अभी तो खिलना शेष है,
अधखुला कमल गणतंत्र का।
अभी तो मिलना शेष है,
भरपूर आनंद गणतंत्र का।
जब होगा नारी का सम्मान,
सुरक्षित होगा शील और मान।
जब न्याय होगा अविलंब,
दंड करें अवरुद्ध कंठ।
निर्दोष सदा खुशहाल हो,
दोषी पर कड़ा प्रहार हो।
जहाँ बचपन की ठंडी छाँव हो,
ना उसपर कोई घाव हो।
अन्नदाता को भी अन्न मिले,
जीवन में खुशियाँ ही खिले।
जब प्रकृति खिल उठे कण- कण में,
और मन मन्दिर हो जन-जन में,
तब खिले कमल गणतंत्र का।
तब तक खिलना शेष है,
अधखुला कमल गणतंत्र का।
अभी तो मिलना शेष है,
भरपूर आनंद गणतंत्र का।
-