आज बहुत रोया तुझे याद करके... तू होती गर...इन महफ़िलो की जरूरत न पड़ती... मुझे मंजूर था तेरे हाथो से कत्ल अपना... तू करती गर...मुझे कातिलों की जरूरत न पड़ती...😢
सनातन आनंद को उपलब्ध हो चूका अहंकार को विसर्जित कर चुका , अपनी छवि को विसर्जित कर चुका अपना व्यक्तित्व विसर्जित कर चुका अपने मूल अस्तित्व को प्राप्त हो चूका...