सदियों से जो चला आ रहा, पीढ़ी दर पीढ़ी के पार,
आँख मूँदकर हम चल देते, उस पथ पर बुद्धि को मार,
तर्क-वितर्क, शिक्षा-विवेक के दरवाज़े करके हम बंद,
पंडित, मौलवी और पादरी की सुनते रहते हम गूढ़ छंद
दान करो पंडित को वरना पाप के भागी बन जाओगे,
नर्क में जाकर इस ग़लती की सज़ा बड़ी तुम पाओगे,
सोना दे दो, चाँदी दे दो, कपड़े रेशम के कर दो वार,
अन्न, द्रव्य से झोली भर दो तब खुलेगा स्वर्ग का द्वार,
समय यही है परिवर्तन का, अंधविश्वास की जड़ खोलो,
पात्र को दो कुपात्र को छोड़ो, मानवता को सबसे ऊपर तोलो,
बूढ़े, अनाथ, गरीब अनेक है, जिनकी जीवन नैया है मज़धार,
बनकर नाविक उन्हें ही दे दो, जीवन जीने का अधिकार |
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