दिन रात मेरे भगवन, मैं भावना ये भाऊं।
जीवन के अंतिम समय में,बस तुम्हें न भूल जाऊं।
न रहे कोई शत्रु मेरा,सबसे मैत्री का भाव भाऊं।
करके क्षमा सबको ,अपनी आत्मा से बोझ उठाऊं।
कर जोड़ सबसे क्षमा चाहूँ,ग़र किसी का दिल दुखाऊँ।
न रखूँ मैल अपने हृदय में,राग द्वेष से मैं छुटा चाहूँ।
क्रोध छूटे, मान छूटे,हृदय की सारी गांठ टूटे।
माया और लोभ विषयों में,न मन रमा चाहूँ।
मन शांत रखूँ, शील रखूँ,बस हृदय में तुझे ध्याऊँ।
रखूँ खुद को संयमित में,न मृत्यु से भय खाऊं।
बस प्रभु तेरे चरण निकट हों,बस तेरे सन्निकट में बसा चाहूँ।।
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