QUOTES ON #अंतर्द्वंद्व

#अंतर्द्वंद्व quotes

Trending | Latest

लबों पर काबिज कर हंसी, दिल में दर्द लिए फिरते हैं,
अंतस में अंतर्द्वंद पाले जीकर भी, हम तो हर रोज मरते हैं!!

-


31 MAY 2021 AT 12:10

अंतर्द्वंद्व
तुम्हारे मन का अंतर्द्वंद्व ।
समझ रही हूं मैं ।
मन में उठने वाले ।
असंख्य सवालों को ।
बनते देख रही हूं मैं ।
बेबाकी से सबकुछ कह देते हो तुम।
अच्छा और बुरा सब कुछ चुप - चाप सह लेते हो तुम।
कभी - कभी मासूम बच्चे जैसे ।
खिलखिलाकर हंस उठते हो तुम।
और कभी एक दम हारा हुआ सा ।
महसूस करते हो तुम ।
जानती हूं और समझती भी हूं मैं ।
किसी अपने को खोकर कैसा लगता है।
ना चाहते हुए भी उसके बिना ।
अकेले तनहा ही जीना पड़ता है ।
लेकिन याद रखना ।
कि हर हार के बाद जीत अवश्य होती है।
हर रात के बाद एक नया सवेरा अवश्य होता है।
हर निराशा में आशा की किरण छुपी होती है।
बस उस किरण को दूढ़कर ।
अपने गंतव्य तक ज़रूर पहुंचना तुम।



-


31 JUL 2019 AT 23:09

हाँ,,,,,! शायद डरता हूँ किसी बहाने बरगलाती
बच बचा के उससे,,,,,, भिडती मुझसे, या फिर
क्यों सब मैं करता हूँ ? बहलाती, ललचाती,,,,
जरूरी है उसकी सहमती संयम से ,दृढ़ता से,,,,,,,,,
समझा, बुझा, जूझकर,,,,, अब जाकर ,कभी कबार
कभी ले ही लेता हूँ अनुमति मनाता हूँ इसको निष्ठा से
कभी बिन सोचे समझे जितनी भी कोशिश करूँ,,
नादां अबोध बच्चे सा,,, हार जाता हूँ,अपनी "इच्छा" से
चल देता हूँ उसके पीछे इसका दमन ही अंत है,,,,,,
कनखियों से मुझपर,,,, दुःखो का, तृष्णा का, भ्रम का
चाहे जाऊँ कहीं भी मैं किन्तु संहार में इसके अंतर्द्वंद्व है !!
रखती वो नज़र,,,,,,, Dr.Rajnish

-


14 JUN 2020 AT 23:10

अंतर्द्वंद्व
----------
अन्तर्द्वन्द्व से लड़कर जो जीत जाता है
वही जिंदगी का बादशाह कहलाता है
मानती हूँ आसां नहीं इससे जीतना ..
घुटन रूपी धुंध में सांसें टूटने लग जाती हैं
न जाने कितने फंदे गले में बंध जाते हैं
हाँथों को फड़फड़ाकर उस बंधन से मुक्ति
चाहते हैं
फिर भी एक अनचाहे काले साए में घिरते
जाते हैं
उस साए का बंधन मजबूत बेहद मजबूत
हो जाता है
और साँस का बंधन टूट जाता है,निर्मम बेहद
निर्मम मृत्यु का आगमन हो जाता है
देखते ही देखते सांसारिक बंधन से प्राणी मुक्त
हो जाता है
क्या सचमुच वो मुक्त हो जाता है?
ये प्रश्न चिन्ह वो अपने पीछे छोड़ जाता है

-


21 MAR 2020 AT 1:59

न जाने क्यूँ कभी कभी मन करता है,
कि मैं अमूर्त होकर ब्रह्म में विलीन हो जाऊँ!

-


2 JUN 2020 AT 3:19

"अंतर्द्वंद्व"

मेरी 'हाँ' तुम्हें बेफ़िक्री नींद सुलाती है।
मेरी ध्वनि प्रतिध्वनित हो,मेरे पास लौट आती है।
संयोग मेरे अरमान लील जाता है।
लेकिन तुम्हें मेरा साथ पूर्ण कर जाता है।
साधिकार तुम मुझे अपना बना भूल जाते हो,
जिस आकर्षण से आकृष्ट हो तुम्हारी संगिनी हुई,
उसी को ऋणात्मक कर तुम,मुझको पाना चाहते हो।
अजी कैसे निष्ठुर-निर्दयी हो! यह कैसा गणित लगाते हो!
प्यार कहाँ कभी अंकों और रेखाओं में समाया है,
यह तो संगीत और साहित्य का 'जाया' है!
मोहब्बत में हारना और टूटना ही जीत है,
और पा लेने पर इश्क़ कहाँ बच पाया है!
सो क्यों न तुम्हें जीत का पैगाम दे दूँ!
शिकस्त-ए-इश्क़ तेरे नाम कर दूँ।
हाँ ! मैं तुमको 'ना' कर दूँ...

-


30 JUL 2021 AT 19:46

खुद से खुद की बढ़ती ये दूरीयां, अब सहन नहीं होती
मैं अब खुद को खुद से बचाना चाहता हूं
और बहुत कर ली अदाकारी, मुस्कुराकर जीने की मैंने,
मैं भी अब सच में जीना चाहता हूं।

-


6 OCT 2022 AT 18:23

मैंने
अपनी तलाश की
स्वयं में
और, उदास हीं रहा!
जबसे ख़ुद को
ढूँढा तुम में...
उल्लास हीं रहा!
तुम्हारे भीतर
मेरा हीं प्रतिरूप था...
मेरे अन्तःतल में
तुम्हारी प्रतिकृति!
विचारों का संगम
लहरों का उत्सव है
हृदय के सागर में!
हम क़ैद कर लेते हैं...
अपने हीं प्रतिबिम्ब को
अंतर्द्वंद्व के आईने में!
उत्सव भी तभी है...
जब खुले हों
घरों के बंद दरीचे!
----राजीव नयन

-


1 AUG 2021 AT 16:07

यदि मित्र वरन हो कर्ण सा
तो सहस्त्र युद्ध मैं लड़ जाऊं।
और हो मित्रता कृष्ण सी तो
मैं प्रलय समक्ष भी अड़ जाऊं।।

यदि मित्र धारणा धर्म सी हो
कैसे मैं धर्म से पीछे हट जाऊं।
और हो प्राणाधार जो वायु सा तो
कैसे हृदय अनंग मैं हो जाऊं।।

यदि जीवन का तिमिर पहर हो
तो वो पहर सारथी इष्टमित्र है।
और यदि आघात हो पश्च सिरा
तो घात में कोई सर्पमित्र है।।

कुछ भरूं मैं अपने रंगो से भी
कोई ऐसा ये अधूरा चित्र है।
और सूर्य सा जलकर पथ दर्शाता
कोई ऐसा ही होता मित्र है।।

-


5 FEB 2021 AT 22:59

जो अधिक मुस्कुराता है वास्तव में वह अपनी परेशानियों को छिपाने के लिए एक कोशिश कर रहा होता है ताकि उन मुस्कान के पीछे हर समस्या छिपा ले,परन्तु प्रश्न है कि छिपाना क्यूँ?उन भाव को दिखा क्यों नही सकते?शायद इसीलिए कोई समझ नही पाता भीतर के उथल पुथल से भरी सोच की तरंगों को...!

-