हम तारीख से दीवार पर टंगे रह गए
और इश्क़ परवान चढ़ता गया,
हम ढूंढते रह गए दिन महीनों में उसको
वो सांसों में बसकर जान बनता गया ,
अहसास नादान थे हकीकत भूल बैठे
मान दे दी उसे वो नादान बनता गया,
तन्हाइयों के मारे रहे हैं हम कब से
जानकर भी वो अंजान बनता गया,
हम शीशा हो गए वो पत्थर ही रहा
वो चोट देकर भी हैरान बनता गया !
- दीप शिखा
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